Importance of निर्जला एकादशी(nirjala ekadashi): A Sacred Hindu Fasting Day

निर्जला एकादशी(nirjala ekadashi) 2024: महत्व, व्रत विधि, और लाभ

आइये जानें -निर्जला एकादशी, जिसे निर्जला उपवासी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। यह एकादशी विशेष रूप से शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को आती है। इस दिन भक्तगण निर्जल उपवासन करते हैं, अर्थात् पानी भी नहीं पीते। यह व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि निर्जला एकादशी का महत्व क्या है, इसका व्रत कैसे किया जाता है और इसके धार्मिक व स्वास्थ्य लाभ क्या हैं।

निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी(nirjala ekadashi) का महत्व

निर्जला एकादशी(nirjala ekadashi) का महत्व हिंदू धर्मग्रंथों और पुरानी परंपराओं में गहराई से निहित है। यह एकादशी उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है जो वर्षभर में किसी भी एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं। इस दिन केवल एक ही व्रत रखने से समस्त एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से भक्तों को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, राजा भीमसेन (महाभारत के पात्र) ने इस व्रत को विशेष रूप से कठिन मानते हुए इसे किया था। उनके कठिन उपवास और दृढ़ निष्ठा के कारण इस व्रत को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन उपवासी रहकर पवित्रता और धार्मिकता को अपनाने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी(nirjala ekadashi) व्रत की विधि

  1. व्रत की तैयारी: निर्जला एकादशी(nirjala ekadashi) के दिन से एक दिन पहले यानि दशमी तिथि को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इस दिन केवल फल-फूल और साबूदाना का सेवन करें और मांसाहारी भोजन से परहेज करें। रात को एकादशी व्रत की तैयारी करें और श्रद्धापूर्वक पूजा की विधि जान लें।
  2. उपवासन की विधि: निर्जला एकादशी के दिन, सूरज उगने से पहले उठकर स्नान करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। इस दिन केवल जल ही ग्रहण करना चाहिए, और यदि संभव हो तो पूर्ण उपवासी रहना चाहिए। व्रत के दौरान पवित्रता और संयम का पालन करना अनिवार्य है।
  3. पूजा विधि: एकादशी के दिन देवी-देवताओं की पूजा विधिपूर्वक करें। घर में भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। सुबह और शाम पूजा के समय विशेष ध्यान दें और भगवान से मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करें। भोग में फल-फूल और प्रसाद अर्पित करें।
  4. जप और ध्यान:  व्रत के दौरान भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करें और ध्यान लगाएं। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
  5. व्रत का समापन:  एकादशी के दिन व्रत समाप्ति के बाद, द्वादशी तिथि को जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत की समाप्ति की पूजा करें। गरीबों को दान दें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इससे व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है।

निर्जला एकादशी व्रत

निर्जला एकादशी के लाभ

  1. धार्मिक लाभ:  इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति को सभी एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है। इससे पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। मोक्ष की प्राप्ति की संभावना भी बढ़ जाती है।
  2. स्वास्थ्य लाभ:  हालांकि निर्जला व्रत कठिन होता है, लेकिन इसके द्वारा शरीर की सहनशक्ति और आत्म-नियंत्रण की क्षमता बढ़ती है। यह व्रत पाचन तंत्र को साफ करने और शरीर की गंदगी को बाहर निकालने में मदद करता है।
  3. आध्यात्मिक लाभ: इस व्रत के द्वारा आत्मिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह मन को शुद्ध करने और ध्यान की शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है।
  4. सामाजिक लाभ: व्रत के दौरान गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने से समाज में एक सकारात्मक संदेश जाता है। इससे समाज में धार्मिक और सामाजिक एकता को बढ़ावा मिलता है।

निर्जला एकादशी व्रत

निष्कर्ष

निर्जला एकादशी व्रत एक अद्भुत अवसर है अपनी आध्यात्मिकता को पुनर्जीवित करने और धर्म के प्रति निष्ठा को बढ़ाने का। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके माध्यम से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक लाभ भी प्राप्त होते हैं। इस व्रत को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

उम्मीद है कि यह ब्लॉग आपको निर्जला एकादशी के महत्व और इसके पालन की विधि को समझने में सहायक रहा होगा। इस पवित्र दिन पर ध्यान और साधना के माध्यम से अपनी आध्यात्मिक यात्रा को संपूर्ण बनाएं और परमात्मा की कृपा प्राप्त करें।

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