भगवद गीता(bhagavad gita quotes) के 101 सर्वश्रेष्ठ उद्धरण हैं, जो जीवन में प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं
यहाँ भगवद गीता(bhagavad gita quotes) के 25 सर्वश्रेष्ठ उद्धरण –
quotes start-
- “सदैव सत्य बोलो, प्रिय बोलो, लेकिन कटु सत्य मत बोलो।”
(सत्य के साथ मधुरता का संतुलन।) - “अर्जुन, तुम्हारा केवल कर्तव्य है कर्म करना, फल की चिंता करना तुम्हारा काम नहीं।”
(कर्म पर ध्यान देना चाहिए, फल पर नहीं।) - “इंद्रियों के संयम से ही मन की स्थिरता प्राप्त होती है।”
(इंद्रियों को नियंत्रित करने का महत्व।) - “जो अपने जीवन में संयमित और अनुशासित रहता है, उसे सच्ची प्रसन्नता प्राप्त होती है।”
(अनुशासन और संयम से सुख की प्राप्ति होती है।) - “वह मनुष्य जो इंद्रियों के विषयों में राग-द्वेष से मुक्त है, वही प्रसन्न रहता है।”
(राग और द्वेष से मुक्त होकर ही सुख प्राप्त किया जा सकता है।) - “अपने धर्म का पालन करते हुए मृत्यु भी हो जाए, तो यह सौभाग्य की बात है, जबकि दूसरों के धर्म का पालन करना भय को उत्पन्न करता है।”
(स्वधर्म का पालन सर्वोपरि है।) - “प्रकृति अपने स्वभाव के अनुसार काम करती है, और मनुष्य को उस प्रवृत्ति का पालन करना चाहिए।”
(प्रकृति के स्वाभाविक नियमों का पालन करना चाहिए।) - “जो मनुष्य ज्ञान और कर्म दोनों को संतुलित करता है, वही श्रेष्ठ होता है।”
(ज्ञान और कर्म का संतुलन आवश्यक है।) - “सभी कार्य भगवान के लिए समर्पित करो, और किसी भी कार्य के प्रति आसक्त मत बनो।”
(सभी कर्म भगवान को समर्पित करके निष्काम रहना चाहिए।) - “जब व्यक्ति मोह और आसक्ति से मुक्त हो जाता है, तभी वह आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करता है।”
(मोह-मुक्ति आत्मज्ञान का मार्ग है।) - “जिसे अपने प्रति सच्चा ज्ञान होता है, वही आत्म-साक्षात्कार करता है।”
(स्वयं के ज्ञान से आत्म-ज्ञान प्राप्त होता है।) - “दुख और सुख, दोनों अस्थायी हैं, इन्हें सहन करना सीखो।”
(सुख-दुख दोनों क्षणिक हैं, इन्हें सहन करना चाहिए।) - “ज्ञान से बड़ा कोई पवित्र चीज नहीं है, और समय के साथ यह ज्ञान प्राप्त होता है।”
(ज्ञान ही सबसे पवित्र चीज है।) - “जो व्यक्ति अपनी आत्मा को जानता है, वह सब कुछ जानता है।”
(आत्म-ज्ञान से सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त होता है।) - “जो व्यक्ति अपने मन और इंद्रियों को जीत लेता है, वही सच्चा विजेता है।”
(मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने से ही सच्ची विजय प्राप्त होती है।)
- “ज्ञानी मनुष्य इंद्रियों के विषयों में आसक्त नहीं होता, वह सदा आत्म-साक्षात्कार में स्थित रहता है।”
(इंद्रियों के विषयों में निरासक्ति ज्ञान का प्रतीक है।) - “इंद्रियों के विषयों में मन लगाना ही मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है।”
(इंद्रिय-विषयों में आसक्ति कमजोर बनाती है।) - “जो व्यक्ति परिणाम की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करता है, वह सच्चा योगी है।”
(निष्काम कर्म ही सच्चा योग है।) - “जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं (भगवान) स्वयं का अवतार लेता हूँ।”
(धर्म की स्थापना के लिए भगवान अवतार लेते हैं।) - “जो कुछ भी हुआ है, वह अच्छा हुआ है। जो कुछ हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है। जो कुछ होगा, वह भी अच्छा ही होगा।”
(सर्वत्र सकारात्मकता का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।) - “जो व्यक्ति सफलता और असफलता को समान रूप से देखता है, वह सच्चा योगी है।”
(सफलता और असफलता में समानता रखना चाहिए।) - “जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर लेता है, वह जीवन के हर परिस्थिति में सफल हो सकता है।”
(मन पर नियंत्रण से जीवन में सफलता मिलती है।) - “संसार में सभी प्राणी मेरे ही अंश हैं, और मैं उनमें निवास करता हूँ।”
(भगवान का हर जीव में निवास है।) - “जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है, और जो मरता है, उसका पुनः जन्म निश्चित है।”
(जन्म और मृत्यु का चक्र अनिवार्य है।) - “वह व्यक्ति जो कर्म में भी निष्काम रहता है, वही श्रेष्ठ है।”(निष्काम भाव से कर्म करना सबसे श्रेष्ठ है।)
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