गुरु पूर्णिमा(guru purnima)2025: महत्व, तिथि, और पूजन विधि
गुरु पूर्णिमा का महत्व
यह (गुरु पूर्णिमा) एक महत्वपूर्ण पर्व है जो गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान को समर्पित है। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है। गुरु का स्थान हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि वह हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाते हैं।इस दिन लोग अपने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं
यह पर्व वेद व्यास जी के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है जिन्हें महाभारत और वेदों के रचयिता के रूप में जाना जाता है। वेद व्यास जी ने चारों वेदों का विभाजन और व्याख्यान किया, जिससे उनकी शिक्षा का प्रसार हो सका। इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
गुरु पूर्णिमा 2025 की तिथि और समय
गुरु पूर्णिमा 2025 में 12 जुलाई, शनिवार को मनाई जाएगी। इस दिन का शुभ मुहूर्त और तिथि इस प्रकार है:
तिथि विवरण | समय और दिनांक |
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ | जुलाई 10, 2025 को 01:36 ए एम |
पूर्णिमा तिथि समाप्त | जुलाई 11, 2025 को 02:06 ए एम |
इस तालिका में तिथि और समय का सटीक विवरण दिया गया है, ताकि आप इस महत्वपूर्ण पर्व को सही समय पर मना सकें।
गुरु पूर्णिमा पर पूजन विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने गुरु की विशेष पूजा करते हैं। यह पूजा विधि इस प्रकार है:
- स्नान: प्रातः काल स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
- पूजा की तैयारी: पूजा स्थान को स्वच्छ करें और वहां पर रंगोली बनाएं।
- गुरु की प्रतिमा या चित्र: गुरु की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थान पर स्थापित करें।
- धूप और दीप: धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं।
- मंत्रोच्चार: गुरु मंत्र का जाप करें और गुरु के चरणों में फूल, अक्षत, और चंदन अर्पित करें।
- प्रसाद: अपने गुरु को फल, मिठाई और अन्य प्रसाद अर्पित करें।
- गुरु के चरण स्पर्श: पूजा के बाद गुरु के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
गुरु का महत्व
हमारे गुरु केवल एक शिक्षक नहीं होते; वह जीवन में मार्गदर्शक, मित्र और माता-पिता समान होते हैं। वह हमें सही मार्ग दिखाते हैं और जीवन के कठिन समय में सहारा देते हैं। गुरु की कृपा से ही शिष्य जीवन के सत्य को जान पाता है और आत्मज्ञान की प्राप्ति कर सकता है।
इस दिन गुरु का सम्मान करना और उनकी शिक्षा का पालन करना हर शिष्य का कर्तव्य होता है। इस दिन का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह शिष्य को गुरु के प्रति अपनी भक्ति और निष्ठा प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है।
गुरु पूर्णिमा का इतिहास
गुरु पूर्णिमा का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। इस दिन को महाभारत के रचयिता वेद व्यास जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। वेद व्यास जी ने न केवल महाभारत की रचना की बल्कि उन्होंने वेदों का विभाजन और उपनिषदों का संकलन भी किया। उनके इस महान कार्य के लिए उन्हें ‘गुरु’ का सम्मान दिया गया और उनके जन्मदिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा।
इसके अलावा, भगवान बुद्ध ने भी आषाढ़ पूर्णिमा के दिन अपने पहले पाँच शिष्यों को ज्ञान का उपदेश दिया था। इसलिए बौद्ध धर्म में भी इस दिन का विशेष महत्व है और इसे गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा की पौराणिक कथाएँ
इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ भी हैं। इनमें से एक प्रमुख कथा भगवान शिव और सप्तऋषियों की है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान प्रदान किया था जिसके कारण उन्हें ‘आदिगुरु’ के रूप में पूजा जाता है।
इसी प्रकार, दत्तात्रेय जी, जिन्हें त्रिदेव का अवतार माना जाता है, ने भी अपने जीवन में कई शिष्यों को ज्ञान प्रदान किया। उन्हें भी गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से पूजा जाता है।
गुरु पूर्णिमा का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
गुरु पूर्णिमा का पर्व समाज में गुरु-शिष्य परंपरा को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन लोग अपने गुरु के पास जाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाते हैं।
इस दिन कई स्थानों पर विशेष आयोजन होते हैं, जहां लोग अपने गुरु का सम्मान करते हैं और उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
निष्कर्ष
गुरु पूर्णिमा 2025 का पर्व हमें गुरु के प्रति हमारी कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन हम अपने गुरु के प्रति समर्पित होकर उनकी शिक्षा का पालन करने का संकल्प लेते हैं। गुरु की कृपा से ही हमें जीवन का सही मार्ग मिलता है, और हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। गुरु पूर्णिमा का यह पावन पर्व हमें जीवन में गुरु के महत्व का बोध कराता है और हमें उनके प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर देता है।
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