ओणम (Onam) 2025: केरल का प्रसिद्ध पर्व और उसकी महिमा
भारत विविध संस्कृतियों और त्यौहारों का देश है और इन पर्वों के माध्यम से देश की सांस्कृतिक धरोहर की झलक मिलती है। इसी कड़ी में केरल का सबसे प्रसिद्ध और धूमधाम से मनाया जाने वाला पर्व ओणम आता है। यह केरल का एक प्रमुख त्यौहार है जिसे हर साल पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
यह पर्व केवल केरल तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे भारत और दुनिया के कई हिस्सों में भी इस पर्व की महिमा और भव्यता देखी जाती है।इसको एक कृषि पर्व के रूप में मनाया जाता है जो नई फसल की खुशियों का प्रतीक है। 2025 में यह पर्व विशेष रहेगा क्योंकि यह 26 अगस्त से शुरू होकर 10 दिनों तक मनाया जाएगा।
ओणम की कथा तथा महत्व
ओणम की कहानी राजा महाबली से जुड़ी हुई है, जिन्हें उनके प्रजापालन के लिए पूरे राज्य में जाना जाता था। राजा महाबली की विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने राज्य में सभी को समान अधिकार दिए थे और उनके राज्य में कोई दुखी या गरीब नहीं था। उनके इस न्यायपूर्ण शासन ने देवताओं को चिंतित कर दिया और वे भगवान विष्णु से मदद मांगने गए। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके राजा महाबली से तीन पग भूमि का दान मांगा।
वामन ने अपने पहले दो पगों में पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लिया और जब तीसरा पग रखने के लिए स्थान नहीं बचा तो महाबली ने स्वयं को समर्पित कर दिया। इस त्याग के कारण भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे हर साल अपनी प्रजा से मिलने के लिए पृथ्वी पर आ सकते हैं और यही समय ओणम का पर्व है।
ओणम 2025: तिथि
2025 में ओणम 26 अगस्त से शुरू होकर 5 सितंबर तक मनाया जाएगा। इस दौरान 10 दिनों तक केरल के घरों, मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों पर धूमधाम से उत्सव मनाया जाएगा। हर दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिनमें पारंपरिक नृत्य, गीत-संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होंगे।
2025 में इसका मुख्य दिन 5 सितंबर को मनाया जाएगा, जब ‘थिरुवोनम’ का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन केरल में हर घर में राजा महाबली के स्वागत के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी और ओणम साद्या का आयोजन होगा।
ओणम के 10 दिन
ओणम के 10 दिनों में हर दिन का अपना महत्व और अनुष्ठान होते हैं। 2025 में ओणम पर्व की शुरुआत 29 अगस्त से होगी। इन 10 दिनों का विवरण निम्नलिखित हैं:
अथम (Atham)
अथम ओणम के 10 दिवसीय उत्सव की शुरुआत का प्रतीक होता है। इस दिन घरों की सफाई और सजावट की जाती है। सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है पुक्कलम (फूलों की रंगोली) बनाना। इस दिन छोटी सी पुक्कलम से शुरुआत होती है जो हर दिन बड़ी और भव्य होती जाती है।अथम का दिन बहुत शुभ माना जाता है क्योंकि इसी दिन राजा महाबली अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं।
चिथिरा (Chithira)
दूसरा दिन चिथिरा कहलाता है, और इस दिन पुक्कलम में और अधिक फूलों का उपयोग किया जाता है। घर की सजावट के साथ-साथ मंदिरों में भी विशेष पूजा-अर्चना होती है। इस दिन घर की साफ-सफाई और अन्य तैयारियों को अंतिम रूप दिया जाता है।
चोधी (Chodhi)
तीसरे दिन का नाम चोधी है। यह दिन खासतौर पर खरीदारी के लिए समर्पित होता है। परिवारजन इस दिन नए कपड़े, आभूषण और अन्य वस्तुएं खरीदते हैं। इसे ‘ओणम कोडी’ के नाम से जाना जाता है। बाजारों में इस दिन विशेष रौनक रहती है, और लोग ओणम की तैयारियों में जुटे होते हैं।
विशाकम (Vishakam)
विशाकम चौथे दिन को कहा जाता है, और इस दिन से ओणम की धूमधाम और भी बढ़ जाती है। ओणम साद्या (विशेष भोज) की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। विभिन्न प्रतियोगिताओं और खेलों का आयोजन भी इसी दिन से आरंभ होता है।
अनिजम (Anizham)
पांचवे दिन अनिजम होता है। इस दिन ओणम के प्रसिद्ध वल्लम कली (नाव दौड़) का आयोजन होता है, जो इस पर्व का एक प्रमुख आकर्षण है। इस दिन पारंपरिक नौकाओं की दौड़ आयोजित की जाती है, जिसे देखने के लिए लोग बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं।
थृक्केट्टा (Thriketta)
थृक्केट्टा छठा दिन होता है। इस दिन से लोग अपने परिवारजनों और प्रियजनों से मिलने और एक साथ समय बिताने के लिए यात्रा करते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। घरों में भी उत्सव का माहौल रहता है।
मूलम (Moolam)
सातवें दिन को मूलम कहा जाता है। इस दिन मंदिरों में ओणम साद्या का आयोजन किया जाता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम, जैसे कथकली और पुलिकली (टाइगर डांस) का आयोजन होता है। इसके साथ ही बाजारों में भारी भीड़ रहती है, और लोग त्यौहार की अंतिम तैयारियों में जुटे रहते हैं।
पूरदम (Pooradam)
पूरदम आठवां दिन होता है। इस दिन राजा महाबली की मूर्ति या प्रतिमा बनाई जाती है और घरों में उसकी स्थापना की जाती है। इसे ‘ओणाथप्पन’ कहा जाता है। पुक्कलम अब और भी बड़ी और विस्तृत होती है, और इसे देखने के लिए लोग एकत्र होते हैं।
उत्तरादम (Uthradam)
नौवां दिन उत्तरादम है, जिसे ‘ओणम का पहला दिन’ भी कहा जाता है। यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि राजा महाबली इसी दिन अपनी यात्रा पूरी करते हैं और अपने राज्य में आते हैं। इसे ‘ओणम के व्रत का दिन’ भी कहा जाता है। इस दिन घर-घर में खुशियों का माहौल होता है और विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं।
थिरुवोनम (Thiruvonam)
थिरुवोनम ओणम का दसवां और सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन को मुख्य ओणम पर्व के रूप में मनाया जाता है। लोग अपने घरों की भव्य सजावट करते हैं, और राजा महाबली के स्वागत के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
पुक्कलम का आकार सबसे बड़ा होता है। ओणम साद्या का आयोजन होता है, जिसमें 26 से अधिक प्रकार के पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं। यह दिन खुशी और उल्लास से भरा होता है, और लोग इसे पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं।
ओणम के रीति-रिवाज
ओणम पर्व का आकर्षण इसके विशेष रीति-रिवाजों और परंपराओं में है, जो न केवल केरल की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं, बल्कि पूरे भारत में इस पर्व की महिमा का अनुभव कराते हैं।
पुक्कलम
पुक्कलम का अर्थ है फूलों से बनाई गई रंगोली। ओणम के हर दिन सुबह-सुबह घर के आंगन में रंग-बिरंगे फूलों से विशेष डिज़ाइन बनाई जाती है, जिसे पुक्कलम कहते हैं। यह रंगोली राजा महाबली के स्वागत के लिए बनाई जाती है।
ओणम साद्या
इसके प्रमुख आकर्षणों में से एक है इसका विशेष भोज, जिसे ‘ओणम साद्या’ कहते हैं। यह भोज केले के पत्ते पर परोसा जाता है और इसमें 26 से अधिक प्रकार के व्यंजन होते हैं जिनमें अवियल, सांभर, रसम, इन्गी करी, पायसम आदि शामिल होते हैं। यह साद्या केवल भोजन का हिस्सा नहीं है बल्कि यह केरल की संस्कृति और पारंपरिक खान-पान की झलक भी है।
वल्लम कली (नौका दौड़)
इसके दौरान केरल के विभिन्न हिस्सों में नौका दौड़ का आयोजन किया जाता है। इस दौड़ में कई प्रकार की नावें हिस्सा लेती हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध ‘स्नेक बोट’ होती है। यह दौड़ दर्शकों के लिए एक बड़ा आकर्षण होती है और इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
कथकली नृत्य
इसके दौरान ‘कथकली’ नृत्य का प्रदर्शन भी किया जाता है। कथकली केरल का एक पारंपरिक नृत्य हैे जिसमें कलाकार विशेष वेशभूषा और मुखौटों का उपयोग करते हैं। इसमें महाभारत और रामायण की कथाओं का मंचन किया जाता है जो देखने में अत्यंत आकर्षक होता है।
टाइगर डांस (पुलिकली)
इस पर्व के अवसर पर ‘पुलिकली’ नामक नृत्य का भी आयोजन होता है, जिसे ‘टाइगर डांस’ भी कहा जाता है। इस नृत्य में कलाकारों को बाघ की तरह रंगा जाता है और वे बाघ की गतिविधियों का प्रदर्शन करते हैं। यह नृत्य अत्यंत लोकप्रिय है और इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं।
ओणम के पीछे की आध्यात्मिकता
यह केवल एक कृषि पर्व नहीं है बल्कि इसमें गहरा आध्यात्मिक संदेश भी निहित है। यह पर्व हमें त्याग, प्रेम, एकता, समानता और समृद्धि के महत्व को समझने का अवसर देता है। राजा महाबली की कथा हमें सिखाती है कि किसी भी शासक का सबसे बड़ा धर्म है अपनी प्रजा की सेवा करना और उन्हें समान रूप से अधिकार देना।
ओणम के पर्व में हम इस संदेश को आत्मसात कर सकते हैं और समाज में एकता और सद्भावना का संचार कर सकते हैं।
निष्कर्ष
यह पर्व केरल की संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। यह न केवल एक धार्मिक पर्व है बल्कि इसमें सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी निहित है। 2025 में ओणम का पर्व और भी विशेष रहेगा, जब पूरे केरल में इस पर्व की धूमधाम और भव्यता देखने को मिलेगी।
ओणम के इस पर्व से हम यह सीख सकते हैं कि जीवन में सादगी, समर्पण और त्याग का महत्व क्या है, और कैसे हम समाज में समानता और प्रेम का संचार कर सकते हैं। ओणम के इस पर्व के माध्यम से हर व्यक्ति अपने जीवन में नई ऊर्जा और उमंग का अनुभव कर सकता है।
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